Jalandhar, March 08, 2023
रिपोर्ट के मुताबिक, लोगों का कहना है कि वे भगवान के पहाड़ों को रंगों से अपवित्र नहीं करना चाहते। धारचूला के बरम गांव निवासी नरेंद्र ने कहा कि इन गांवों में चिपला केदार देवता की पूजा की जाती है। यह भगवान शिव और भगवती का रूप है। यहां हर तीसरे साल चिपला केदार यात्रा आयोजित की जाती है। आसपास के इलाकों में इसकी खासी पहचान है। लोग यहां परिक्रमा करते हैं और फिर कुंड में स्नान करते हैं। इसे गुप्त कैलाश के नाम से भी जाना जाता है, जो 16,000 फीट की ऊंचाई पर है।
उनका मानना है कि रंग देवताओं को नाराज कर देंगे। एक ग्रामीण ने बताया कि यहां होली खेलना अपवित्र माना जाता है। इन लोगों के लिए होली आम दिनों की तरह ही होती है। कोई नहीं चाहता कि देवता नाराज हों। कई लोगों का मानना है कि यहां होली खेलने वाले का बुरा होता है।
लोगों का कहना है कि अगर किसी परिवार में होली खेली जाए तो इसके बुरे परिणाम जल्द ही देखने को मिल सकते हैं। एक व्यक्ति या एक जानवर अपने घर में मर जाता है। एक ग्रामीण ने कहा, यह स्थान देवी भरदी का स्थान है और यहां रंग वर्जित है, हमारा मानना है कि होली दुर्भाग्य लाएगी। इसलिए हम रंगों से दूर रहते हैं।
इतिहासकार कहते हैं कि होली कभी भी पहाड़ी त्योहार नहीं था। पहाड़ी क्षेत्रों के आदिवासियों ने भी होली नहीं मनाई। इसके बाद जब लोगों का पलायन शुरू हुआ तो पहाड़ों में भी होली मनाई जाने लगी। धारचूला के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि धारचूला के आंवल समुदाय और बरपटिया समुदाय ने कई सालों से कोई हिंदू त्योहार नहीं मनाया है।कुमाऊं में कई जगहों पर बैठी होली मनाई जाती है। यह वह जगह है जहां लोग इकट्ठा होते हैं, लोक गीत गाते हैं और भोजन का आनंद लेते हैं।
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