Jalandhar, March 22, 2023
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि किसी भी आरोपी को फांसी या मौत की सजा तभी दी जानी चाहिए, जब उसके सुधार की सारी उम्मीदें और गुंजाइश खत्म हो चुकी हो। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने मंगलवार को इस बात पर जोर दिया कि किसी अभियुक्त में सुधार की गुंजाइश है या नहीं, यह निर्धारित करने के लिए परिस्थितियां क्या होनी चाहिए।
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने 21 मार्च को सुंदरराजन नाम के शख्स की मौत की सजा को घटाकर 20 साल जेल कर दिया था। सुंदरराजन को 2009 में 7 साल के एक बच्चे के अपहरण और हत्या का दोषी पाया गया था और उसे मौत की सजा सुनाई गई थी।
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने सुंदरराजन की सजा को बरकरार रखा, लेकिन मौत की सजा को 20 साल कैद में बदल दिया। इस बीच, अदालत ने पाया कि एक आपराधिक कृत्य के आरोपी की सजा को कम करने वाले कारकों में अभियुक्त की पृष्ठभूमि, हिरासत या कारावास की अवधि के दौरान जेल में उसका व्यवहार या उसका आपराधिक इतिहास शामिल है।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौत की सजा पर तभी विचार किया जाना चाहिए जब आरोपी के सुधार की सभी संभावनाएं समाप्त हो चुकी हों। सुप्रीम कोर्ट के 2013 के फैसले के खिलाफ सुंदरराजन द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने यह आदेश पारित किया। 2013 में, सुप्रीम कोर्ट ने सुंदरराजन को मौत की सजा देने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
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